लेखक :आशुतोष तिवारी
14 सितंबर को कैबिनेट ने एक फ़ैसला लिया । सरकार ने यूपी , छत्तीसगढ़ , हिमाचल , कर्नाटक और तमिलनाडू की क़रीब डेढ़ दर्जन समुदायों को एसटी वर्ग का दर्जा दे दिया है । लम्बे समय से यह जन जातियाँ अपने स्टेटस को ले कर माँग कर रही थीं । आइए इस ब्लॉग के ज़रिए समझते हैं कि एसटी लिस्ट में शामिल होने या बाहर होने की क्या प्रक्रिया है ।
1- जनजातियों को एसटी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू होती है राज्य सरकार की सिफारिश से ।यह सिफ़ारिश राज्य सरकार द्वारा जनजातीय मामलों के मंत्रालय भेजी जाती है । मंत्रालय इसकी समीक्षा करता और तय मानकों पर जाँच -पड़ताल करता है । समीक्षा के बाद मंत्रालय एप्रूवल के लिए इसे ‘ रजिस्टार जनरल ऑफ इंडिया’ यानी भारत के महापंजीयक को भेजता है। RGI के अनुमोदन के बाद यह प्रस्ताव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजा जाता है । आयोग अंतिम निर्णय के लिए इसे फिर से केंद्र सरकार के पास भेजता है । कैबिनेट बिल के ज़रिए जनजाति के स्टेट्स को अंतिम स्वीकृति देती है ।
2- यह प्रक्रिया एक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के स्तर पर शुरू होती है । राज्य सरकार या प्रशासन किसी विशेष समुदाय को एससी या एसटी सूची से जोड़ने या बाहर करने की मांग करता है। इस प्रक्रिया में अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के कार्यालय से एक अधिसूचना जारी करके किया जाता है।
3- यह प्रक्रिया भी जानना ज़रूरी है कि वह कौन से मापदंड है ,जिनके आधार पर राज्य सरकारें इस मामले में सिफ़ारिश करती हैं । इसके लिए नृवंशविज्ञान सम्बंधी लक्षणों (Ethnological traits) का सहारा लिया जाता है ।पारंपरिक विशेषताएं , विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव और पिछड़ापन आदि मानकों पर किसी समुदाय की स्थितियों का मूल्याँकन किया जाता है । हालाँकि सुप्रीम कोर्ट फ़ुल प्रूफ़ पैरामीटर्स बनाने की बात कर चुका है ,क्योंकि कई दफ़ा लाभ के लिए भी इस तरह की सिफ़ारिशें की जाती हैं ।
4- जनगणना-1931 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को “बहिष्कृत” और “आंशिक रूप से बहिष्कृत” क्षेत्रों में रहने वाली “पिछड़ी जनजाति” कहा जाता है। 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने पहली बार प्रांतीय विधानसभाओं में “पिछड़े जनजातियों” के प्रतिनिधियों को बुलाया था । आपको यह जानकार हैरानी होगी कि संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंड को परिभाषित नहीं करता है और इसलिए 1931 की जनगणना में तय की गयी परिभाषा का उपयोगआज़ादी के बाद के शुरुआती सालों में किया जाता रहा । हालाँकि, संविधान का अनुच्छेद 366 (25) अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने की प्रक्रिया प्रदान करता है ।
संविधान में अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों को सूचीबद्ध यानी लिस्टेड किया गया है। इस फैसले के बाद देश में अनुसूचित जनजातियों की संख्या 705 से बढ़कर 720 हो गई है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में ST की जनसंख्या 10.43 करोड़ है । यह देश की कुल आबादी का 8.6% है। लगभग दस करोड़ भारतीय आदिवासी समुदाय से जुड़े हैं ,जिनमे से सिर्फ़ एक करोड़ लोग शहरी इलाक़ों में रहते हैं ।
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