लेखक : आशुतोष तिवारी
‘जब तक दार्शनिक , राजा नहीं बन जाते या राजा , दार्शनिकों में नहीं बदल जाते तब तक दुनिया से बुराइयां मिटना सम्भव नहीं है |’ यह यूनानी दार्शनिक प्लेटो का मानना था । प्लेटो राजनीतिक दर्शन की दुनिया के गॉडफादर हैं – दुनिया के पहले राजनीतिक दार्शनिक, जिनका लिखा हुआ हम पढ़ सकते हैं । एक ऐसा चिंतक जिसका मानना था कि साम्यवाद सिर्फ संपत्ति का ही नहीं पत्नियों का भी होना चाहिये । हालाँकि उनके इस सिद्धांत की सबसे जबरदस्त आलोचना उनके चेले अरस्तु ने ही की है। जानिये , प्लेटो के उन पांच सिद्धांतों के बारे में जिनकी चर्चा सिर्फ दर्शनशास्त्र पढने वालों के बीच सिमट कर रह जाती है ।
1- पत्नियों का साम्यवाद –
प्लेटों के अनुसार उसके ‘आदर्श राज्य’ में सैनिक और शासक दोनों ही वर्ग के लोग विवाह नहीं करेंगे और वे निजी संपत्ति भी नहीं रखेंगे। वह इन दोनों के समूहीकरण की व्यवस्था करता हैं। वह सुझाता है कि ये दोनो वर्ग सार्वजनिक आवासों में रहेंगे, सार्वजनिक भोजनालयों में भोजन करेंगे तथा मुक्त यौन संबंध रखेंगे।इनके बच्चों का पालन राज्य करेगा ।हालाँकि प्लेटो ने पत्नियों की इस साम्यवादी व्यवस्था की मुख्य रूप से तीन वजहें बताईं हैं ।पहली यह कि ओरतें अपना निजी परिवार बनाने के बाद घर – गृहस्थी के बन्धनों में पड़ जाती हैं । शासक वर्ग भी पारिवारिक मोह में अंधा हो जाता है । इससे भाई भतीजा वाद बढ़ता है । जब संरक्षक वर्ग अपना निजी परिवार नहीं बसाएगा और जब स्त्रियाँ सबकी समान रूप से पत्नियाँ होंगी तब उनके बच्चे भी सामान रूप से सबके बच्चे होंगे । न तो बच्चा अपने माता –पिता को जान पाएगा और न ही माता –पिता बच्चे को । इस तरह राजनीति से भाई – भतीजावाद और परिवारवाद ख़तम हो जायेगा । दूसरा यदि औरतें परिवार के बंधन से आजाद रहेंगी तो पुरुषों के साथ आदर्श राज्य चलाने में सहयोग देंगी | तीसरा अस्थाई विवाह प्रणाली से उत्तम संतान पैदा होगी । प्लेटो के इस सिद्धांत की तीखी आलोचना हुई । कहा गया कि राज्य कभी परिवार का रूप धारण नहीं कर सकता और इस व्यवस्था से यौन विकृतियाँ भी पैदा होंगी ।
2 – प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था –
प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था की कल्पना आज से काफी अलग थी । वह समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा का अरेंजमेंट नहीं करता । उसका मानना था कि सिर्फ शासक वर्ग और सैनिक वर्ग को ही शिक्षा मिलनी चाहिए । उत्पादक वर्ग को इससे दूर रखना चाहिए । सैनिक वर्ग भी सिर्फ 30 साल तक पढ़ लिख सकता है | केवल शासक वर्ग को पचास साल तक पढने की आजादी होनी चाहिए । हालांकि प्लेटो शिक्षा में जेंडर डिस्क्रिमिनेशन नहीं करता । वह मेल और फीमेल दोनों को बराबरी से शिक्षा की पैरवी करता है।
3 – संपत्ति का साम्यवाद –
आदर्श राज्य की व्याख्या करते हुए प्लेटो कहता है कि – शासकों के पास केवल उतनी ही सम्पत्ति होगी जितनी जीवन बिताने के लिए जरूरी है । इसके अलावा आज के नेताओं की तरह न ही कोई अपना मकान होगा और न ही ख़ास सुविधाएँ । वह आम भोजनालयों में भोजन करेंगे और फौजियीं की तरह डेरों में रहेंगे | वह सोना – चांदी भी नहीं छू सकेंगे । हालांकि प्लेटो का साम्यवाद सिर्फ सभी वर्गों के लिए नहीं है और न ही इसका आधार आज की तरह आर्थिक है । बस प्लेटो का साम्यवाद अंततः संरक्षक वर्ग को धन के आकर्षण से मुक्त करते हुए लोक कल्याण में लगे रहने की बात कहता है ।
4 – प्लेटो का दार्शनिक राजा और आदर्श राज्य –
प्लेटो का दार्शनिक राजा वन मैन आर्मी है । स्मार्ट , नॉलेजेबल और निर्मोही । एकांत में रहने वाला , दार्शनिक , चिन्तक । न्याय प्रिय , नीति परायण और सौन्दर्यवान । प्लेटो का मानना था कि जहाँ राजा ईमानदार होगा , वहां कानून की जरूरत नहीं है | प्लेटो का आदर्श राज्य भी एक ऐसे राज्य की कल्पना है जिसमे बुराई और भ्रष्टाचार न हो । आदर्श राज्य अच्छाई की प्रतिमूर्ति है । राज्य में न्याय की स्थापना होगी , ज्ञान का शासन होगा; जब राजा दार्शनिक होगा । शिक्षा , कला और साहित्य पर राज्य का नियन्त्रण रहेगा । महिलाओं और पुरुषों से समान व्यवहार होगा | हालांकि लोकतंत्र के समर्थकों द्वारा प्लेटो के दार्शनिक राजा की जमकर गिल्लियां उड़ाई गयीं । प्लेटो के आदर्श राज्य को गैर व्यवहारिक कल्पित राज्य कहकर काफी आलोचना की गयी है ।
5 – ‘न्याय’ पर प्लेटो के विचार –
प्लेटो की एक किताब है – ‘रिपब्लिक’ । इस किताब के जरिये प्लेटो ने न्याय से जुड़ी बहस पर अपने विचार रखे हैं । प्लेटो का मानना था कि अपनी – अपनी योग्यता अनुसार काम करना और दूसरे के कामों में दख़ल नहीं देना – यह न्याय है । उन्होंने न्याय की परम्परावादी सोच और थ्रेसिमेकस की उग्रवादी सोच दोनों को नकार कर न्याय का अपना सिद्धांत दिया । उनके अनुसार हर आदमी में तीन गुण प्राकृतिक रूप से होते हैं – ज्ञान ,साहस और तृष्णा । राज्य व्यक्ति का ही बढ़ा हुआ रूप है तो राज्य को भी यह तीनो बातें स्वीकार करनी चाहिए । जिसके पास ज्ञान है वो शासन का काम करे , जिसके पास साहस है वो रक्षा का काम करे और तृष्णायुक्त वर्ग उत्पादक का काम करे । इस तरह तीनो का समन्वय राज्य को आदर्श रूप प्रदान करेगा ।
प्लेटों के इन विचारों की सबसे ज़्यादा आलोचना उनके शिष्य अरस्तू ने ही की । आलोचक कहते हैं कि प्लेटो के समय दास -व्यवस्था थी लेकिन उसने उस व्यवस्था पर मौन रहकर एक तरह से उसका समर्थन किया । उनके राज्य के विचार को यूटोपिया माना गया ।हालांकि शुरुआती दार्शनिक के तौर पर हम उनके विचारों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते । किसी भी विषय की शुरुआत सोचने के नए आयाम देती है ,जिसका बाद में तमाम आयामों से विकास होता रहता है । आज जब कई शासक ग़ैर ज़िम्मेदार और लोभी हो गए हैं तो यह ज़रूरी है कि प्लेटो के उन विचारों पर ध्यान देना चाहिए ,जिसमें उसने राजा के विद्वान और निर्मोही होने की वकालत की है ।
Leave a Reply