हिंदी दिवस स्पेशल : हिंदी भाषा की सबसे खास बातें क्या हैं?

लेखक आशुतोष तिवारी

आज हिंदी दिवस है । 14 सितम्बर । भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा । हर भाषा की अपनी विशेषताएँ होती हैं , कुछ ख़ासियतें , जो उसे दूसरों से अलग करती हैं । यह ख़ासियतें उस भाषा की वजूद बनाती हैं । भारतीय भाषाओं में भी हिंदी की अपनी कुछ ख़ासियतें हैं – उन पर कुछ बिंदु यूँ कहे जा सकते हैं –

1- हर भाषा का अपना ‘आत्म’ यानी ‘सेल्फ़’ होता है । यह ‘आत्म’ उस भाषा के समाज में पलने वाले संस्कृति के स्वभाव से बनता है । भारतीय समाज में हम जो संस्कृति मानते हैं ,जीते हैं ,उसके सबसे बड़ी ख़ासियत क्या है – एक बहुलता , जो सभी को अपने में शामिल कर लेती है । अगर आप ध्यान से देखेंगे तो हिंदी ने हर भाषाओं के शब्दों को अपने में इस तरह शामिल कर लिया है कि उन्हें अब अलग करना मुश्किल है । यह ख़ासियत इस भाषा ने भारत की संस्कृति से पाई है, जहाँ सभी परम्पराएँ साथ मिलकर ‘वादे वादे जायते तत्व बोध:’(आपसी चर्चा से ही ज्ञान हासिल होता है ) से प्रेरणा ले कर साथ मिलकर पलती बढ़ती रहीं है । हिंदी का भी यही स्वभाव है । वह सभी भाषा के शानदार शब्दों को अपने भीतर शामिल कर लेती है ।

2- किसी भी समाज को समझने के लिए वहाँ की भाषा को समझना बहुत आवश्यक है । क्योंकि हर समाज के अनुभव सबसे पहले चिंतन के स्तर पर उसके दिमाग़ में विचार के तौर पर आए थे । विचार बिम्ब यानी इमेजेस बनकर आते हैं और भाषा उन बिंबों यानी प्रतीक -चित्रों का अनुवाद होती है । किसी भी समाज की कल्पनाएँ , विचार सबसे पहले उसकी अपनी भाषा में शरीर पाते हैं । इसलिए जब हम दूसरी भाषाओं के चश्मे से किसी भी समाज को समझने की कोशिश करते हैं तो हमेशा हमसे चूक होती है । भारत में हिंदी के बनने की जो लम्बी परम्परा रही है , वह सिर्फ़ एक भाषा के बनने की प्रक्रिया भर नही है , बल्कि भारत के बनने और बदलने की प्रक्रिया भी इसमें देखी जा सकती है ।

3- जिस तरह का हिंदी आज हम इस्तेमाल करते हैं ,उसे गांधी ने ‘हिंदुस्तानी’ भाषा कहा था , हालाँकि अब इसमें तमाम तरह के शब्द शामिल हो गए हैं । बोले जाने के मामले में जो स्वीकार्यता आज हम देखते हैं हिंदी की , यह बहुत नयी है । ख़ास तौर से साहित्य में खड़ी बोली हिंदी गद्य का प्रयोग 18वीं शताब्दी की घटना है । यह भाषा संस्कृत से पाली , प्राकृत के रास्ते अपभृंश ,पुरानी हिंदी से एक खड़ी बोली हिंदी बनी है ,जिसे कभी अमीर खुसरो ने अपनी मुकरियों में गुना था । फिर इसकी तमाम बोलियाँ जैसे राजस्थानी , अवधी और ब्रज़ हिंदी साहित्य में छायी रहीं । बाद में अब हम जिसे भारत का पुनर्जागरण कहते हैं ,उसी के साथ इस भाषा का गद्य में खड़ी बोली के तौर पर प्रयोग होना शुरू हुआ । परम्परा के आधार पर हिंदी भाषा के श्रोत जितने पुराने हैं , गद्य साहित्य और आम जन में अपने आज के स्वरूप में यह उतने ही नए हैं ।

4- हिंदी को बढ़ावा देने की सभी बातें तब तक भावनात्मक हैं जब तक इस भाषा के लिए ठोस प्रयास नही किए जाते । जैसे तकनीक और कौशल के लगभग कोर्स हिंदी भाषा में मौजूद नही है । हैं भी तो बहुत कठिन हालंकि अच्छा हो कि इस कठिनता से कतराया न जाए ,जैसे कि हम अंग्रेज़ी के कठिन शब्दों को तलाश कर सीखते हैं । कोशिश होनी चाहिए कि उच्च शिक्षा की किताबें हिंदी में मौजूद हों , न सिर्फ़ मौजूद हों बल्कि मौजूँ भी हों । यह तभी होगा जब दफ़्तर में संचार की भाषा के तौर पर हिंदी का इस्तेमाल होगा ।इसका मतलब यह बिल्कुल नही कि संचार अंग्रेज़ी में नहीं होगा ,बात एक भाषा की अनिवार्यता ख़त्म होने की है और हिंदी को औपचारिक संवाद के विकल्प के तौर पर स्वीकार करने की है । दूसरा समाज शास्त्र और इस तरह अन्य कला विषयों से जुड़े रिसर्च मूल रूप से हिंदी में हों । तीसर दुनिया का ज्ञान ,जो दूसरी भाषाओं में है ,उसके प्रामाणिक अनुवाद हिंदी भाषा में सरलता से मौजूद हूँ । यह एक दिन में नही होगा बल्कि सरकार और समाज के प्रयास से की जाने वाली एक लम्बी साधना होगी ।

Ashutosh Tiwari

अपने विषय में बताना ऐसा लगता है, जैसे स्वयं को किसी अजनबी की तरह देख रहा होऊँ । लेकिन ख़ुद को अजनबी की तरह देखना ही हमें ईमानदार बनाता है। नाम आशुतोष तिवारी है । कानपुर से हूँ। शुरुआती पढ़ाई हुई होम टाउन से। फिर पत्रकारिता से स्नातक की पढ़ाई करने दिल्ली आ गया। 2016 में IIMC में डिप्लोमा किया और आ गया IPAC । चार साल यानी 2020 तक यहीं रहा। मीडिया फ़ील्ड डेटा, PIU और लॉजिस्टिक आदि लगभग सभी गलियारों में घूमा और 2020 में चला गया हिंदी से मास्टर और JRF करने। अब फिर से 2021 में वापस आ गया हूँ। एक यूट्यूब चैनल है। हिंदी साहित्य में ख़ास रुचि है। किताबें पढ़ना, फ़िल्में देखना पसंद है।

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