लेखिका ऋषिका अग्रवाल
भारत का मूल स्वरूप है विविधता में एकता। सैकड़ों साल की गुलामी के बाद जब देश आज़ाद हुआ तो विदेशियों ने कहा कि हिंदुस्तान में अगर लोकतंत्र स्थापित होता है तो वह मात्र एक अपवाद होगा। उनका तर्क था कि भारत में इतनी विविधता है कि यहां लोकतंत्र के बचाए रखना बड़ी चुनौती साबित होगा। लेकिन देश ने उनकी इस बात को 1947 से अबतक गलत साबित किया है। लेकिन आज आज़ादी के 75वें साल में एक बार फिर देश के सामने वही सवाल खड़ा है कि, कि कहीं 75 साल पुरानी विदेशी इतिहासकारों की वह आशंका सच तो साबित नहीं हो जाएगी। यह बात मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि बीते कुछ बरसों से देश के भीतर विभिन्न समुदायों और जातियों पर आपत्तिजनक टिप्पणियों का जो सिलसिला चल रहा है उससे देश की आधारभूत सोच ‘Unity in Diversity’ यानी ‘ विविधता में एकता’ को गहरा धक्का पहुंचा हैं।
हेट स्पीच क्या होती है ?
बीते कुछ दिनों से देश में हेट स्पीच आम बात हो गई है। भारतीय मीडिया में इस तरह की खबरें मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी है। इस बारे में हम आपको बताएं, उससे पहले हमें समझना होगा कि आखिर हेट स्पीच होती क्या है और भारत के संविधान में इसको लेकर क्या प्रावधान किए गए हैं। आम तौर पर हेट स्पीच हम ऐसे शब्दों, इशारों, लिखावटों और वार्तालापों को कहते हैं जिससे हिंसा भड़काने का प्रयास किया जाता है या देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जाती है। या फिर सांस्कृतिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास किया जाता है। यानी आप साफ तौर पर यह कह सकते हैं कि ऐसे विचार जिनके बोलने या व्यक्त करने से किसी जाति, समुदाय या वर्ग को धक्का पहुंचे या उसकी अस्मिता को चोट पहुंचे तो उसे हेट स्पीच कहा जाता है।
नेताओं पर हेट स्पीच के आरोप चिंता का विषय
हेट स्पीट का मुद्दा कई वजहों से चर्चा में है लेकिन यह मुद्दा तब और बड़ा और संगीन हो जाता है जब हेट स्पीच के आरोपी किसी नेता पर लगे। दरअसल, केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) और बीजेपी सासंद प्रवेश वर्मा (Pravesh Verma) पर हेट स्पीच का आरोप था। उनके खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए CPM नेता वृंदा करात कोर्ट पहुंच गई थीं। उन्होंने अनुराग ठाकुर पर हेट स्पीच का आरोप लगाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि धर्म, जाति, क्षेत्र या जातीयता के आधार पर निर्वाचित प्रतिनिधियों, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं की ओर से दी गई हेट स्पीच भाईचारे की अवधारणा के खिलाफ हैं। इस तरह के बयान और विचार संवैधानिक लोकाचार को ‘बुलडोज़’ करते हैं। कोर्ट ने कहा कि कई ऐसे मामले आ रहे हैं जो हिंसा को बढ़ावा देते हैं। ऐसे ही एक दूसरे मामले में भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले कालीचरण की जमानत पर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। वहीं, हाल ही में नूपुर शर्मा द्वारा दिए गए पैगंबर मोहम्मद पर कथित तौर पर विवादास्पद टिप्पणी ने देश मे जगह-जगह प्रदर्शन किए जा रहे हैं। स्वामी दिनेशानंद भारती उर्फ सिंधु सागर महाराज ने हिन्दू धर्म संसद पर विवादित बयान दिया था लेकिन उन्हें ज़मानत दे दी गई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया कि ये पूरे माहौल को खराब कर रहे हैं। इससे पहले कि वह दूसरों को जागरूक करने के लिए कहें, पहले उन्हें खुद को संवेदनशील बनाना होगा। वह संवेदनशील नहीं हैं । यह कुछ ऐसा है जो पूरे माहौल को खराब कर रहा है।
भारतीय संविधान में हेट स्पीच को लेकर क्या हैं प्रावधान
भारतीय संविधान में हेट स्पीच को लेकर कोई अलग से खास प्रावधान नहीं है लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के दायरे में कुछ पाबंदियां लगाकर हेट स्पीच को परिभाषित किया गया हैं। संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार 8 तरीके के प्रतिबन्ध हैं जैसे- राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, कोर्ट की अवहेलना, मानहानि, हिंसा, भारत की अखंडता व संप्रभुता।
इनमें से किसी भी बिंदु के तहत अगर कोई बयान या लेख आपत्तिजनक पाया जाता है तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ सुनवाई और कार्रवाई का प्रावधान है। हमारे देश में भड़काऊ भाषण देने पर इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 153A और 153AA के तहत केस दर्ज़ किया जाता है। कई मामलों में धारा 505 भी जोड़ी जाती हैं।
आंकड़ों में हेट स्पीच के तहत दर्ज़ केस
हेट स्पीच के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार देश में हर साल धारा 153A के तहत दर्ज़ होने वाले मामलों की संख्या बढ़ती जा रही हैं। 2014 में देश में हेट स्पीच के 336 मामले दर्ज़ हुए थे। वहीं, 2020 में 1,804 मामले दर्ज़ हुए। यानी, 7 साल में हेट स्पीच के मामले 6 गुना तक बढ़ गए। मामले बढ़ रहे हैं और हेट स्पीच मामले में आरोपियों में से काफी कम लोगों को ही सजा मिलती है। NCRB के अनुसार 2014 में अदालतों में हेट स्पीच से जुड़े 19 मामलों का ही ट्रायल पूरा हुआ था। इनमें से सिर्फ 4 मामलों में ही आरोपियों को सजा मिली थी। 2020 में 186 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ और 38 मामलों में सजा मिली। 2020 में हेट स्पीच के मामलों में कन्विक्शन रेट 20.4% था। जिससे यह पता चलता हैं कि मामले तो दर्ज़ होते हैं लेकिन सजा नहीं दी जाती, जिससे लोगो के अंदर डर की भावना पनप नहीं पाती और ऐसे ही सामाजिक सद्भाव और समाज के तानेबाने से खिलवाड़ की जाती रहती है।
हेट स्पीच को लेकर लॉ कमीशन की सिफारिशों को अभी तक लागू नहीं किया गया है। इन सिफारिशों को लेकर बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है | यह मामला अभी कोर्ट में पेंडिंग है। न्यायिक फैसलों की देरी के कारण मामलों में बढ़ोतरी होती हैं।
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