Politics

जाति न पूछो साधू की …..

जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान, भारत में सियासत के लिए इस बात के कुछ मायने नहीं हैं| ऐसा लगता है कि ये ज्ञान सिर्फ और सिर्फ स्कूल की किताबों के लिए है, असल जिंदगी में सियासत ही सब कुछ है जो फिलहाल कह रही है कि सबसे पहले जाति ही पूछो और वो भी सबकी। हाल के समय में यह विषय सर्वाधिक विवाद में रहा है। जाति और आरक्षण संबंधी पुरानी बहसों की तरह ही इसमें भी स्पष्ट खांचें बने हुए हैं ।

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न बचा सके अखिलेश: आज़मगढ़ और आज़म का गढ़

2019 के आम चुनाव में मिली हार का हिसाब, आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी ने अखिलेश यादव से बराबर कर लिया है। और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनावों में मिली हार की कसक भी मिटा ली है। आजमगढ़ में बीजेपी उम्मीदवार दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ और रामपुर में घनश्याम सिंह लोधी ने अपनी अपनी सीटें पर जीत हासिल की हैं।

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ये प्यार है या PR है?

माँ के 100वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका आशीर्वाद लेने गुजरात के गांधीनगर स्थित उनके आवास पहुंचे। पीएम मोदी द्वारा अपनी मां से मुलाकात करते, उनके पैर धोते हुए और अपनी मां का मुंह मीठा कराते हुए कई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे रहे हैं। लोग इस पर अपनी प्रतिकिर्या भी दे रहे हैं।

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किसी को ‘हिटलर’ कहने से पहले अब ये ज़रूर सोचिएगा ?

भारत में आम बोलचाल की भाषा में ‘हिटलर’ शब्द ख़ूब इस्तेमाल होता है । ख़ास तौर से एक विशेषण के तौर पर । यदि कोई यहाँ अपनी ज़िद पर अड़ना अपनी आदत बना लेता है और अपनी राय को ही आख़िरी फ़ैसला समझता है , तो हम इसे ‘हिटलर’ के विशेषण से नवाज़ देते हैं। भारत की राजनीति में भी यदा- कदा नेता एक दूसरे को ‘हिटलर’ कहते रहे हैं। क्या यह इतनी सामान्य बात है कि बातचीत में ही सही ,किसी को हिटलर कह दिया जाए ।इसलिए मैने सोचा कि हिटलर के उन निजी पक्षों पर लिखता हूँ ,जो आम जनता में ज़्यादा चर्चित नहीं हैं । फिर आप ख़ुद तय कीजिएगा कि किसे हिटलर कहना है किसे नहीं ।

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MCD से PMO तक का सफर

कैसा हो यदि एक रोज़ आधी रात के समय आपको एक फ़ोन आए और आप से कहा जाए, चलिए जनाब सुबह आपको प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी है । कुछ ऐसा ही हुआ श्री आई के गुजराल यानी इन्द्र कुमार गुजराल के साथ और वह बने देश के बारहवें प्रधानमंत्री। वर्ष 1997 में अचानक रात 2 बजे गुजराल साहब को पता चला की वह देश के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। हालांकि उनका कार्यकाल एक वर्ष का ही रहा।

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हेट स्पीच के बढ़ते मामले और बर्बाद होता सामाजिक ताना-बाना!

भारत का मूल स्वरूप है विविधता में एकता। सैकड़ों साल की गुलामी के बाद जब देश आज़ाद हुआ तो विदेशियों ने कहा कि हिंदुस्तान में अगर लोकतंत्र स्थापित होता है तो वह मात्र एक अपवाद होगा। उनका तर्क था कि भारत में इतनी विविधता है कि यहां लोकतंत्र के बचाए रखना बड़ी चुनौती साबित होगा। लेकिन देश ने उनकी इस बात को 1947 से अबतक गलत साबित किया है।

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अगर आप युवा हैं और राजनीति से निराश हैं तो ये ब्लॉग आपके लिए है । यूथ और पॉलिटिक्स (भाग-1)

अगर आप युवा हैं और राजनीति से निराश हैं तो ये ब्लॉग आपके लिए है । यूथ और पॉलिटिक्स । दोनों ही कमाल के शब्द हैं और एक दूसरे के सहयोगी भी , लेकिन हैरानी की बात यह है कि दोनों का इस्तेमाल एक दूसरे के ख़िलाफ़ किया गया है । राजनीति का युवाओं के विरुद्ध । युवाओं का राजनीति के ख़िलाफ़ । कैसे ? आज युवाओं का लगता है कि राजनीति विरासती लोगों , अमीरों और अपराधियों का काम है ।

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Can India have a “single” National Identity

In the recent past, various attempts have been made to promote the idea of a ‘singular’ national identity for the citizens of India by the ruling party. The emphasis on measures such as ‘one nation, one language’, ‘single’ national test for admissions to central universities, ‘one nation, one health card’ and so on testify to this .

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बेहाल बिहार

चाणक्य की नीति, आर्यभट्ट का आविष्कार

महावीर की तपस्या, बुद्ध का अवतार

सीता की भूमि, विद्यापति का संसार

जनक की नगरी, माँ गंगा का श्रंगार

चंद्रगुप्त का साहस, अशोक की तलवार

बिंदुसार का शासन, मगध का आकार

दिनकर की कविता, रेणु का सार

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सियासत, मौकापरस्ती और कट्टरता का नया टूल बनता “धर्म”|

किसी भी धर्म की परिभाषा उसके मानने वालों पर निर्भर करती है। धर्म को कोई कैसे और कितना साथ लेकर चलता है या किसी के जीवन में उसका कितना महत्व है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है।

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