लेखक: प्रशांत शुक्ला
यूपी में मिड-डे मील की स्टोरी करने पर पत्रकार को डीएम की शिकायत पर जेल भेज दिया गया था। यूपी के बलिया में बोर्ड परीक्षाओं का पर्चा लीक करने की खबर चलाने पर 3 पत्रकारों को प्रशासन ने जेल भेज दिया था। जाने माने पत्रकार और फैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया और यूपी के सीतापुर पूछताछ के लिए लेकर गई। टीवी पत्रकार अमन चोपड़ा पर राजस्थान में मामला दर्ज किया गया। इससे पहले पत्रकार अर्णब गोस्वामी को महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेजा था। आपको याद होगा कि दिवंगत पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल में केस दर्ज हुआ था और उन्हें अगले दिन हिमाचल में कोर्ट के सामने पेश होने का समन जारी किया गया था। अब पत्रकार रोहित रंजन का मामला सामने आया है, जिसमें छत्तीसगढ़ पुलिस रायपुर में उन पर केस दर्ज किया और यूपी के गाजियाबाद में गिरफ्तार करने पहुंची थी।
अब आप इन सभी मामलों पर एक बार फिर से नज़र दौड़ाइये और देखिए कि कैसे लोगों पर, किस काम के लिए, किस राज्य में FIR दर्ज हुई और संबंधित प्रदेश में किस पार्टी की सरकार है। मसलन, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जिन पत्रकारों (अमन चोपड़ा और रोहित रंजन) पर केस दर्ज हुआ वह तथाकथित बीजेपी सपोर्टर हैं। जिस महाराष्ट्र में रिपब्लिक टीवी के कर्ताधर्ता अर्णब पर केस दर्ज हुआ वहां उस समय कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी के गठबंधन वाली सरकार चल रही थी। अर्णब के बारे में कहा जाता है कि उनके सभी चैनल दक्षिणपंथ के सपोर्ट में खबरों का प्रसारण करते हैं। विनोद दुआ अक्सर अपने कार्यक्रमों के ज़रिये केंद्र सरकार की पोल खोलते रहते थे, उन पर बीजेपी शासित हिमाचल प्रदेश में केस दर्ज हुआ था। यानी, बचाने और फंसाने के इस सरकारी कुचक्र में सिर्फ एंजेंडाबाज़ी और विचारधारा का खेल है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी और गैरबीजेपी शासित प्रदेशों की सरकारों का एक ही जैसी घटना पर अलग-अलग रवैया नहीं होता। मसलन जो बीजेपी नेता, पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी को जायज़ ठहरा रहे हैं, वही बीजेपी नेता और दक्षिणपंथ के समर्थक रोहित रंजन की गिरफ्तारी को पत्रकारिता पर हमला बता रहे हैं। जो बीजेपी नेता बलिया के पत्रकारों की गिरफ्तारी पर एक लब्ज़ नहीं बोले, वही बीजेपी नेता अमन चोपड़ा और अर्णब गोस्वामी के समर्थन में खड़े दिखते हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि इन प्रदेशों की पुलिस भी यहां की सरकारों के हिसाब से उन्हीं के समर्थन में कार्रवाई करती दिखती है, जो कि कोई नई बात नहीं है। लेकिन सवाल ये है कि कोई भी ऐसा कृत्य जो कानून संगत नहीं है लेकिन समाज में वह एक तरह से स्वीकार्य हो गया है, तो क्या उसे गलत नहीं कहा जाएगा? या फिर किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने की बदनीयती और दोषी के बचाने के असंवैधानिक तरीके को जस्टीफाई करना कितना सही है? मैं यह बात किसी को समर्थन या विरोध में नहीं लिख रहा हूं, बल्कि ये सवाल मेरे ज़ेहन में इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ दिनों से जिस तरह की पुलिसिया कार्यप्रणाली अमल में लाई जा रही है, उससे यह लगने लगा है कि अलग-अलग दलों की सरकारों में काम करने वाली पुलिस ने उनके हितों के हिसाब से अपनी-अपनी IPC और CRPC बना ली है या उसे अपनी सहूलियत के मुताबिक इस्तेमाल करने लगी है। क्योंकि बीते बरसों में जिस तरह से पुलिस ने अपना सलूक बदला है उससे पता चलता है कि सिर्फ वर्दी का रंग रंग है, बाकी सब कुछ बदल चुका है। इसका ताजा उदाहरण एंकर रोहित रंजन के केस के तौर पर हम सबके सामने है।
सबसे पहले आप घटना समझिये, उससे जुड़ी बातें और फिर सरकारों के हिसाब से पुलिस का सेलेक्टिव अप्रोच समझने की कोशिश कीजिए। जून माह से ही देश में बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा और दिल्ली बीजेपी के आईटी सेल इंचार्ज नवीन कुमार जिंदल के ईशनिंदा वाले बयान पर बवाल मचा हुआ है। दोनों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में कई जगह FIR भी दर्ज हैं, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई। इसके विरोध में पूरे देश में मुसलमानों ने हिंसक प्रदर्शन भी किए और भड़काऊ बयान भी दिए गए। इन बयानों और हिंसा में शामिल लोगों पर भी कार्रवाई हुई। मामला थोड़ा हल्का हो ही रहा था कि इसी बीच 28 जून को राजस्थान के उदयपुर में एक हिन्दू दर्जी कन्हैयालाल की दो मुस्लिम युवकों ने हत्या कर दी और हत्या का वीडियो भी सोशल मीडिया पर जारी कर दिया। इस तरह की वारदातों को देश का मीडिया अमूमन हाथों-हाथ लेता है। न्यूज़रूम की भाषा में कहें तो यह सबसे बिकाऊ माल होता है। बहरहाल कन्हैयालाल की हत्या के बाद हत्यारे अरेस्ट हो गए। राजस्थान की गहलोत सरकार ने मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में रेफर करने की सिफारिश भी कर दी।
कायदे से देखा जाए तो यह मामला यहां पर आकर शांत हो जाना चाहिए था, लेकिन इस मामले में अभी सियासत की एंट्री होनी बाकी थी। बीजेपी ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ हल्ला बोला तो कांग्रेसी नेता हत्यारों का बीजेपी कनेक्शन खोज लाए। देश के हिन्दू-मुस्लिम सियासी नेरेटिव में मीडिया अपनी खबरों को चमका रहा था, कि 1 जुलाई की रात 9 बजे ZEE NEWS पर प्रसारित किए जाने वाले लोकप्रिय प्राइम टाइम DNA में राहुल गांधी का एक बयान चलाया गया। उस रात DNA को एंकर रोहित रंजन होस्ट कर रहे थे। क्योंकि चैनल के संपादक सुधीर चौधरी चैनल से इस्तीफा दे चुके थे। खैर यह संस्थान का आंतरिक मसला है। प्रोग्राम में राहुल गांधी का जो बयान दिखाया गया उसे एंकर रोहित रंजन ने उदयपुर वाली घटना से जोड़कर बताया। जबकि असलियत में राहुल गांधी का वह बयान केरल में उनके लोकसभा क्षेत्र वायनाड में उनके कार्यालय को एसएफआई के कुछ लड़कों द्वारा तोड़फोड़ के संबंध में था। रोहित रंजन ने राहुल के उस बयान को कन्हैयालाल के हत्यारों के सपोर्ट के तौर पर प्रसारित किया। हालांकि जैसे ही कांग्रेस ने चैनल के इस कृत्य पर आपत्ति जताई तो रोहित रंजन और चैनल ने पार्टी और दर्शकों से माफी मांगी।
बावजूद इसके उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सिविल लाइन थाने में जहां कांग्रेस की सरकार है। यह मामला दर्ज करवाया भिलाई नगर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक देवेंद्र यादव ने। सियासी दांव पेंच समझने वाले जानते हैं कि अपनी पार्टी की सरकार और अपने प्रदेश में अपने विरोधी के प्रति किसी भी तरह की कार्रवाई सबसे मुफीद औजार होती है। रोहित पर मामला दर्ज हुआ और आनन-फानन में पुलिस सीजेएम कोर्ट से वारंट भी ले आई और गिरफ्तारी के लिए गाजियाबाद पहुंच भी गई। लेकिन मामला यहीं पर फंस गया, गाजियाबाद यूपी में है और यूपी में सरकार बीजेपी की है। गाजियाबाद की वसुंधरा थाना पुलिस भी आनन-फानन में पहुंची और रोहित की गिरफ्तारी के तरीके को गलत बताने लगी, जो था भी। क्योंकि नियम कहता है कि बिना स्थानीय पुलिस को सूचना दिए किसी भी वारंट की तामील नहीं करवाई जा सकती। एफआईआर के बाद अगर पुलिस के बुलाने पर आरोपी जांच में सहयोग नहीं करता है या थाने और कोर्ट में नहीं पहुंचता है, तब उसके खिलाफ वारंट जारी होता है और गिरफ्तारी होती है। लेकिन इस केस में ऐसा कुछ नहीं हुआ। उधर यूपी पुलिस ने छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्रवाई के अवैध करार दिया। यानी एक ही कानून की पालना कराने वाली दो राज्यों की पुलिस अपनी ही गीता (सीआरपीसी) को अपने-अपने तरह से परिभाषित कर रही थी। गिरफ्तारी के दौरान राज्यों की पुलिस के बीच छीनाझपटी की तस्वीरें पूरे देश ने देखीं। नतीजा यह हुआ कि यूपी की नोएडा पुलिस रोहित रंजन को पकड़कर थाने ले गई और उसी मामले के दूसरे केस में पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया। अब रोहित रंजन गायब हैं और छत्तीसगढ़ पुलिस उन्हें ढूंढने के साथ ही गाजियाबाद पुलिस के खिलाफ गाजियाबाद पुलिस से ही शिकायत कर रही है। बहरहाल दो राज्यों की सरकारें आपस में पुलिस-पुलिस खेल रही हैं..।
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